शुक्रवार, 3 जून 2016
राह और राही
जीवन में हम
रहे मगन
चले दिए उधर
ले गया जिधर
मन
चलते रहे चलते
ही रहे हरदम
देखते दाएं बाएं ऊपर नीचे
नदी तालाब बाग़ बगीचे
पैरों की थकावट नापते
रुक गए जहाँ थक गया बदन
राही राह का होता है
राह भी राही से बनती है
दोनों के वजूद मिट जायें
ग़र राही को लग जाये
मंज़िल से लगन
ज़रा देखा जांचा परखा
पेड़ को, उसकी छाँव को
फूलों फलों को
आते जाते, सुस्ताते लोगों को
जब लगी लगाव की अगन
अशांत सा हो गया जीवन
वो राह थी इंतज़ार में राही के
राही को भी रास न आई मंज़िल
उचटने सा लगा था मन
राम राम पेड़ भाई
फल फूल तितली भँवरे
आप सब बहुत सुंदर हैं
सुरीले हैं मीठे हैं
पर वो राह मेरे बिना अकेली है
वो दिन रात उसी जगह मेरा इंतज़ार करती है
जहाँ मैं उसे छोड़ आया था
ज़रा भी टस से मस नहीं होती
उसे लगता है अगर वो चल पड़ी तो
मैं उसे कहाँ ढूंढूंगा
उसे बेहद प्यार है मुझसे
राह से वफ़ादार 'दोस्त' कोई नहीं
अपने राही के लिए
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
कहानी, एक पुरानी
नमस्कार महोदय नमस्कार, जी आप... कौन? पहचाना नहीं मैंने। जी मैं एक दूत हूँ। नदी के तट पर जो धर्मशाला है वहां से आया हूँ। इतनी दूर से? जी कह...

-
मैं भी अपने उन दिनों में जुड़ा था एक कारवाँ से मेरे लिए वो पहला ही कारवाँ था मैं जुड़ा था जिससे जब मैंने उसे नज़दीक से देखा मैं देखता ही रह ग...
-
धीरे धीरे ही सही पर कुछ तो है, जो अब नहीं है मतलब मेरे पास नहीं है शायद चुरा रहा है ये ज़माना मेरा ख़ज़ाना पहले तो ग़ुम हो जाती थ...
-
वक़्त , वक़्त की क्या बात करें क्या कहा जा सकता है इसके बारे में ये दिखाई नहीं देता सुनाई नहीं देता चेह...
