एक दिन ऐसा एहसास हुआ मुझे
कि जैसे किसीने पुकारा हो मुझे
देखा इधर उधर
पर न आया कोई नज़र
फिर किसीने हल्के से छू दिया मुझे
घबरा के मैंने पूछा,
"कौन हो भाई दिखाई क्यों नहीं देते"
एक सकपकाई सी आवाज़ आई
"जी मैं यहीं हूँ, आपके बिलकुल नज़दीक"
बग़ैर देखे ही मैंने तीर चला दिया
"जनाब मैंने पहचाना नहीं
हम पहले मिले हैं क्या?"
"जी अभी तक तो नहीं"
"तो फरमाएं, कौन हैं आप"
"जी मैं, मैं एक दर्द हूँ"
"दर्द ? आपको मुझसे क्या सरोकार है"
"जी ... रहने को जगह मिलेगी कुछ दिन के लिए"
"जी! रहने को जगह?
नहीं भाई मुश्किल है मेरे लिए आपको जगह देना
देखो न मेरे सारे ख़ाने आराम से भरे हैं
अब आराम से आराम करते हुए आराम को निकाल कर
दर्द को जगह देना बेवकूफी होगी ना
मेरी कितनी बदनामी होगी कुछ ख़बर भी है आपको"
"अरे जनाब इतने बड़े जिस्म में कोई तो ऐसा ख़ाना होगा
जहाँ आराम इतना ज़्यादा हो कि मेरा पता ही न चले"
"हैं ! क्या ऐसी भी कोई जगह हो सकती है? पर आप कौन से दर्द हैं
मसलन सर के पेट के या ..."
"नहीं नहीं ऐसा नहीं है हम तो जहाँ चले जाएँ वही नाम ले लेते हैं
मसलन सर दर्द, पीठ दर्द, पेट दर्द वगैरह"
"हम्म ..."
"जी ज़रुरत पड़े तो हम हाथ की उंगली में भी रह लेंगे
पर अगर दो में से एक घुटना मिल जाता तो क्या बात थी
"ये तो आप ज़्यादती कर रहे हैं
आराम की भी अपनी ज़िन्दगी है"
"अरे बहुत कर लिया आराम
अब हमारे जैसे बेसहारों को भी जगह मिलनी चाहिए
और कितनी रंग बिरंगी विटामिन की गोलियां निगलोगे
अपने अंदर का माहौल तो एक दिन बर्बाद होना ही है
फिर उस बर्बादी के पैसे भी देने होंगे
मियां अब आराम का वक़्त जाता रहा
अब ज़माना है परेशानी का
नई नई तरह तरह की अजीबो ग़रीब परेशानियां
इनसे आदमी का दिमाग़ ज़्यादा चलने लगता है
अरे जब किसी मुसीबत को टालना हो तो नए तरीके ईजाद करने पड़ते हैं
है कि नहीं?
तो जनाब अगर आप हमें रहने की जगह दे दें
तो आप इससे कहीं ज़्यादा अक़लमंद हो जायेंगे
ये वादा है"
"आपकी जिरह का भी जवाब नहीं
ठीक है, तो आइये
जहाँ जगह मिले रह जाइये
आराम से तमीज़ से बात कीजियेगा"
इसके बाद तो जनाब कलाई से लेकर सर तक
कंधे से एड़ी तक
पेट, पीठ, कमर हर जगह भर गयी दर्द से
हक़ीम के माथे की शिकन बढ़ गयी
दवाएं धीरे धीरे कम हुईं
फिर बंद हो गयीं
उनके दोनों हाथ दुआ पर आकर ठहर गए
कहा अब कोई इलाज नहीं
लुत्फ़ लीजिये इनका
दर्द ही तो है कोई मौत तो नहीं
बात मुझे सही लगी
उसके पीछे का जज़्बा भी सही लगा
भई अब ये बिचारे कहाँ जाते?
सोच के मैंने इन्हें अपना लिया
अब ये सारे दर्द मेरे हैं
मेरे अपने हैं
ये मुझे ज़्यादा तकलीफ भी नहीं देते
हो सकता है आदत पड़ गयी हो
ये सब अब मेरे साथ ही रहेंगे
मैं इनका साथ आख़ीर तक न छोड़ूंगा
अब हम बिछड़ेंगे
तो उस गर्म माहौल में
जब मुझे ख़ुद से, इनसे और इन्हें मुझसे
मिल जाएगी निजात
आख़ीर में हम इस नतीजे पहुंचे 'दोस्त'
कि दर्द और परेशानियां तो हमेशा ही रहेंगी
पर आप उनके दोस्त बन कर रहोगे
या उनकी दुश्मनी मोल लोगे?