वो, दूर जो अँधेरा दिखाई दे रहा है ना
काले पहाड़ जैसा
हाँ वही, अँधेरे का पहाड़
उसके उस पार,
उधर उसके दूसरी तरफ
जी हाँ उधर ही, वहीँ कहीं
मेरी रोशनी छुपी बैठी है
क्यों आप नहीं देख पा रहे उसे ?
वो, अँधेरे के ठीक बीचो बीच
ध्यान लगाइये
मैं तो आसानी से देख सकता हूँ
अँधेरा है तो क्या हुआ
देखना तो रोशनी को है ना
अँधेरा अपनी जगह, रोशनी अपनी जगह
हाँ, मैं मनाता हूँ कि अगर रोशनी हो
तो अँधेरा नहीं हो सकता
दोनों एक साथ नहीं रह सकते
पर अब ऐसा है तो क्या करें
ठीक है, आपकी बात...
मैं मानता हूँ
आपको रोशनी नहीं दिखाई दे रही
और मुझे?
वैसे, मुझे भी इतनी ठीक से...
पर वो है ज़रूर
वहीँ उस अँधेरे की खाई के उस पर
नहीं नहीं पहाड़ के उस पार
मुझे... जाना है वहां
उसके बग़ैर मैं...
पर देखो, एक बार चल पड़ा तो
रास्ता भी मिल ही जायेगा
जहाँ चाह वहां राह
शायद उस अँधेरे पहाड़ के रास्तों पर रोशनी हो
या शायद, न भी हो
इसलिए अँधेरे के अंदर सीधे चलना ही मुनासिब होगा
जब दिखाई न दे, तो सीधे चलना चाहिए
पता नहीं रास्ते में क्या मिल जाये
क्या टकरा जाये
कांटे पत्थर खाई
सांप बिच्छू जानवर
कुछ भी मिल सकता है
हाँ, अगर सोचो तो...
मेरे जैसे इंसान भी मिल सकते हैं
क्या दुनिया में रोशनी तलाश सिर्फ मुझे है?
क्या उस पार के लोगों को
इस पार की रोशनी की तलाश नहीं होगी?
हो भी सकती है