दूर वो जो पर्दा दिखाई देता है
उस के पीछे कोई बैठा लगता है
कभी कभी वो परदे पर एक अक्स छोड़ देता है
पर कभी दिखाई नहीं देता
मैंने तो उसे कभी देखा नहीं
नहीं, असल में किसी ने भी नहीं
कौन होगा वो
और वहां क्यों छुपा बैठा है
क्या उसे दुनिया की ज़रुरत नहीं है
या शायद वो दुनिया से छुप रहा है
आज मैंने दूर से देखा
कुछ दूर पर लोगों का एक झुण्ड था
वो सब उस परदे की ओर देख रहे थे
ज़ोर ज़ोर से बातें कर रहे थे
हाथ हिला-हिला कर इशारे कर रहे थे
ऐसा लगा कि आज तो इस पर्दे का
पर्दा फाश करके रहेंगे
मैं उनके नज़दीक गया
उन सबकी मिलीजुली आवाज़ों से कुछ समझ न आया
फिर मैंने एक के कंधे पर हाथ रखा
कोई फायदा नहीं हुआ
दूसरे का हाथ पकड़ के उसे टोका
तो वो दूसरा हाथ हिलाने लगा
फिर मैंने उसे अपनी ओर खींचा
उसने बेहद अजीब नज़रों से मुझे देखा
"क्या चाहिए", बोला
मैंने कहा, "ऐसा भी क्या हो गया
इस परदे का किस्सा तो पुराना है"
"अजी जनाब आपको पता नहीं,
उस परदे के पीछे एक नहीं दो लोग हैं"
ज़हन में एक बिजली सी चमकी
दो लोग!
कैसे? किसने देखा ?
सबने देखा
पहले एक का सर ऊपर आया
फिर छुप गया
फिर दूसरे का
और वो भी नीचे बैठ गया
दो लोग!
कोई बोला "मुझे पता है दूसरा सर औरत का है
दोनों एक साथ ऊपर नहीं आते"
जैसे वो साथ दिखाई नहीं देना चाहते
किसी को नहीं, कभी नहीं
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