मैं भी अपने उन दिनों में
जुड़ा था एक कारवाँ से
मेरे लिए वो पहला ही कारवाँ था
मैं जुड़ा था जिससे
जब मैंने उसे नज़दीक से देखा
मैं देखता ही रह गया था
वो इतना बड़ा, ऊंचा और सुंदर था
सुना वो कई मंज़िलें तय कर चुका था
मुझे तो लगा था
कि मेरे जैसे आम आदमी को ये कैसे देखेगा
कैसे देख सकेगा
इतने ऊंचे कारवाँ को
मैं दिखाई भी दूंगा या नहीं ...
मैं घर आ गया
अगले दिन फिर गया
उस कारवां के इर्द गिर्द घूमा
एकाएक ऐसा लगा
कि शायद मैं इसको
बचपन से जनता हूँ
पहचानता हूँ
आज कारवां की खुशबू भी अच्छी थी
कहीं कहीं से संगीत सुनाई दे रहा था
कहीं कोई गा रहा था
हर कोई किसी न किसी काम में मस्त था
ख़ुश था
खिड़की से किसी ने हाथ हिलाया
फिर अंदर बुलाया
पानी पिलाया चाय भी पिलाई
अब मुझे वो सब सीधे साधे ही लगे
काफी कुछ मेरे जैसे
एक ने कहा कहाँ रहते हो
मैंने कुछ कहा
उसने कहा तो यहीं रह जाओ
मैं मुस्कराया और सोचने लगा
अरे हम लोग हमेशा एक नयी मंज़िल की तरफ चलते हैं
नए शहरों नए घरों में रहते हैं
नए नए घर बनाते हैं
अपने नए गीत बनाते और गाते हैं
ये बात मुझे बेहद पसंद आयी
तुम भी हमारे साथ कई मंज़िलें देख सकते हो
मेरे भी वो दिन थे
वो वाले, जब जोश होता है
हिम्मत होती है
और ऐसे कारवाँ
दुनिया में कम ही होते हैं
मैं अपनी पोटली ले कर पहुँच गया ...
फिर मुझे याद नहीं
कितनी मंज़िलें हमने पार कीं
कहीं रुके या
बिना रुके ही बढ़ते गए
बढ़ते गए ...
ख़ैर जनाब वक़्त बदलता है
चीज़ें बदलती हैं
चीज़ें बदलती हैं
सुंदरता कम हो जाती है
चाल धीमी हो जाती है
नयी मंज़िलों को ख़्वाहिश भी कम हो जाती है
कारवां भी रुक रुक के चलता है
कई लोग दूसरे कारवां ढूंढने लगे थे
अब मैं भी उसे कुछ दूर से देखा रहा था
उसकी शक्ल अलग सी हो गयी थी
वो भी मुझे पहचानने की कोशिश कर रहे थे
मेरे भाव पढ़ रहे थे
मुझे याद है जब ये कारवां चलता था
तो कितना ढेर सारा ग़ुबार उठता था
और कितना ऊंचा जाता था
उस ग़ुबार का भी एक नशा था
कहते हैं, "मैं अकेला ही चला था
जानिबे मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए कारवां बनता गया"...
अब मैंने इस ख्याल का उल्टा प्लैबैक होता देखा है
'दोस्त' साथ छोड़ते गए
कारवां गुम होता गया
अब न तो वो कारवां है
न ही वो ग़ुबार ...